बिहार में कृषि-श्रमिकों की संख्या बहुत अधिक है तथा निरंतर वृद्धि हो रही है। 2001 ई. की जनगणना के अनुसार बिहार में कृषि-मजदूरों की संख्या 90.20 लाख से भी अधिक थी। इसके अनेक कारण हैं-
(i) तेजी से जनसंख्या में वृद्धि-1991-2001 ई. में बिहार की जनसंख्या 28.43% बढ़ी जबकि सम्पूर्ण भारत के लिए यह वृद्धि 21.34% थी। अतः अन्य उद्योगों के अभाव में कृषि को ही जनसंख्या का यह अतिरिक्त बोझ वहन करना पड़ता है । इससे कृषि-श्रमिकों की संख्या में वृद्धि हो रही है।
(ii) औद्योगीकरण का अभाव-बिहार में इसकी गति विलकुल अवरुद्ध है । झारखंड के बन जाने से बिहार में उद्योग का अभाव हो गया । जो कुछ है जैसे चीनी मिल, कागज उद्योग, सिमेंट उद्योग आदि बंद हो. गए। कई उद्योग साधनों के अभाव में बंद हो गए । कुटीर एवं लघु उद्योगों की भी यही हालत है। अतः सब भार कृषि पर ही पड़ रहा है कृषि-श्रमिकों की तेजी से वृद्धि हो रही है ।
(iii) भूमि का असमान वितरण-बिहार में जमींदारी उन्मूलन के बाद भी भूमि-सुधार का कोई भी कार्यक्रम नहीं हुआ । भू-दान से प्राप्त भूमि भी कानूनी विवादों में उलझकर रह गयी। छोटे-छोटे किसान ऋणग्रस्तता के कारण-कृषि-श्रमिक बनने पर मजबूर हो गए। इनकी दशा में सुधार लाने के लिए उपाय बतावें ।
कृषि-श्रमिकों की दशा में सुधार के उपाय निम्न प्रकार हैं-
(i) कृषि पर आश्रित उद्योगों का विकास-कृषि पर आधारित उद्योगों के विकास से कृषक मजदूर खाली समय में इन उद्योगों में काम कर सकें और अपनी आय में सुधार ला सकें । इन उद्योगों में चीनी मिलों की स्थापना या बंद मिलों को फिर से चालू करना, जूट उद्योग आदि प्रमुख हैं।
(ii) न्यूनतम मजदूरी नियमों को लागू करना–भारत सरकार का न्यूनतम मजदूरी अधिनियम लागू है। पर उसका ठीक ढंग से पालन नहीं हो रहा है। अतः मजदूर आर्थिक शोषण के शिकार हमेशा होते हैं।
(ii) कृषि मजदूरों के लिए भूमि की व्यवस्था-भूमि व्यवस्था को सुधार कर उनके बीच भूमि का वितरण हो सके।
(iv) अन्य कारण-कृषि-श्रमिकों की एक प्रमुख कठिनाई यह है ..कि ये पूर्णतः निरक्षर और असंगठित हैं। इनमें संगठन नहीं है अतः महाजनों द्वारा इनका शोषण होता है । इसी तरह कृषि कल्याण केन्द्र की स्थापना होनी चाहिए जहाँ इनका और इनके बच्चों के स्वास्थ्य की देखभाल हो सके । सहकारी समितियों की स्थापना, कार्य के घंटे को निश्चित करना । ये सब कार्य करने से कृषक मजदूरों की दशा में सुधार लाया जा सकता है।