ब्रह्मो समाज की स्थापना 1830 में राजा राममोहन रॉय ने की थी। ब्रह्मो समाज मूर्ति-पूजा और बलि के विरुद्ध था और इसके अनुयायी उपनिषदों में विश्वास रखते थे। इसके सदस्यों को अन्य धार्मिक प्रथाओं या परम्पराओं की आलोचना करने का अधिकार नहीं था। ब्रह्मो समाज ने विभिन्न धर्मों के आदर्शों- मुख्यतः हिन्दुत्व और ईसाई धर्म-के नकारात्मक और सकारात्मक पहलुओं पर प्रकाश डाला।