स्थायी बंदोबस्त में जमींदारों को किसानों से लगान वसूलने और कंपनी को राजस्व चुकाने का जिम्मा सौंपा गया। वे राजस्व संग्राहक बन गये और उन्होंने भूमि सुधारों पर ध्यान देना छोड़ दिया। दूसरी तरफ राजस्व की दरें अधिक होने के कारण यदि कोई जमींदार उसे चुका पाने में असमर्थ होता था, तो उसकी जमींदारी उससे छीनकर किसी अन्य को बेच दी जाती थी। जमींदारों को उक्त दोनों प्रभाव स्पष्टतः दिखाई दिए।