(c) 1934 मे जे. हेमरलिंग ने हरे शैवाल की दो जातियों एसिटाबुलेरिया क्रेनुलाटा और एसिटाबुलेरिया मेंडिटरिनी पर एक प्रयोग किया। दोनों टोपी के आकार में भिन्न होते हैं। दोनों ही जातियों में केंन्द्रक राइज्वाइड में स्टॉंक की सतह पर होता है। अगर टोपी को हटाकर एक जाति के स्टॉंक को दूसरी जाति के राइज्वाइड पर ग्राफ्ट किया जाता है तो टोपी का आकार केन्द्रक निर्धारित करता है। इससे साबित होता है कि किसी जीव में लक्षण केन्द्रक द्वारा नियंत्रित होते हैं।