जल उपलब्धता की समस्या- जल एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है तथा पृथ्वी के लगभग तीन-चौथाई भाग पर जल उपलब्ध है किन्तु इसमें से अधिकांश जल लवणीय है, जो मनुष्य के उपयोग में नहीं आता। पृथ्वी पर केवल 2.7 प्रतिशत जल ही अलवणीय है जिसमें से भी लगभग 70 प्रतिशत भाग बर्फ की चादरों तथा हिमानियों के रूप में अंटार्कटिका, ग्रीनलैण्ड और पर्वतीय प्रदेशों में पाया जाता है। अतः मनुष्य के लिए मात्र एक प्रतिशत अलवणीय जल ही उपलब्ध हो पाता है। किन्तु अत्यधिक उपयोग एवं जल प्रदूषकों के कारण कई देशों में जल का संकट उत्पन्न हो गया है। जल स्रोतों के सूखने अथवा जल प्रदूषण के कारण अलवणीय जल की आपूर्ति की कमी के मुख्य कारक बढ़ती जनसंख्या, भोजन एवं नकदी फसलों की बढ़ती मांग, बढ़ता नगरीकरण और बेहतर होता जीवनस्तर है। आज विश्व के अनेक देश जल संकट से गुजर रहे हैं।
जल संसाधनों के संरक्षण के उपाय- वर्तमान में विश्व में शुद्ध एवं पर्याप्त जल स्रोतों की उपलब्धता बड़ा संकट बनता जा रहा है। अतः जल संसाधनों का संरक्षण आवश्यक है। जल संसाधनों के संरक्षण हेतु निम्न उपाय किए जा सकते हैं-
(1) अशोधित या आंशिक रूप से शोधित वाहित मल, कृषि रसायनों का विसर्जन और जल निकायों में औद्योगिक बहिःस्राव जल के प्रमुख प्रदूषक हैं। इन प्रदूषकों को जल निकायों में छोड़ने से पूर्व बहिःस्रावों को उपयुक्त विधि से शोधित करके जल प्रदूषण नियंत्रित किया जा सकता है।
(2) वन और अन्य वनस्पति आवरण धरातलीय प्रवाह को मंद करते हैं तथा भूमिगत जल को पुनः पूरित करते हैं। अतः वनों का विस्तार किया जाना चाहिए।
(3) जल संग्रहण पृष्ठीय प्रवाह को बचाने की एक अन्य विधि है।
(4) जल रिसाव को कम करने के लिए खेतों को सिंचित करने वाली नहरों को ठीक से पक्का करना चाहिए।
(5) रिसाव और वाष्पीकरण से होने वाली जल क्षति को रोकने हेतु स्प्रिंकलरों से खेतों की सिंचाई करनी चाहिए।