मृदा- पृथ्वी के धरातल पर दानेदार कणों के आवरण की पतली परत मृदा कहलाती है। मृदा का प्रकार स्थल स्वरूप द्वारा निर्धारित होता है तथा मृदा का निर्माण चट्टानों से प्राप्त खनिजों एवं जैव पदार्थ तथा भूमि पर पाए जाने वाले खनिजों से होता है। अपक्षय की प्रक्रिया द्वारा मृदा का निर्माण होता है।
मृदा निम्नीकरण रोकने तथा संरक्षण के उपाय- मृदा संरक्षण के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं-
(1) मल्च बनाना- इस विधि के अन्तर्गत पौधों के बीच अनावरित भूमि जैव पदार्थ जैसे प्रवाल से ढक दी जाती है। इस विधि से मृदा की आर्द्रता रुकी रहती है।
(2) वेदिका फार्म- इस विधि में चौड़े, समतल सोपान अथवा वेदिका तीव्र ढालों पर बनाए जाते हैं ताकि सपाट सतह फसल उगाने के लिए उपलब्ध हो जाए। इनसे पृष्ठीय प्रवाह और मृदा अपरदन कम होता है।
(3) समोच्चरेखीय जुताई- मृदा अपरदन रोकने की इस विधि में एक पहाड़ी ढाल पर समोच्च रेखाओं के समान्तर जुताई ढाल से नीचे बहते जल के लिए एक प्राकृतिक अवरोध का निर्माण करती है।
(4) रक्षक मेखलाएँ- मृदा संरक्षण की इस विधि में तटीय प्रदेशों और शुष्क प्रदेशों में पवन गति रोकने के लिए वृक्ष कतारों में लगाए जाते हैं ताकि मृदा आवरण को बचाया जा सके।
(5) समोच्चरेखीय रोधिकाएँ- समोच्च रेखाओं पर रोधिकाएँ बनाने के लिए पत्थरों, घास, मृदा का उपयोग किया जाता है। रोधिकाओं के सामने जल एकत्र करने के लिए खाइयाँ बनाई जाती हैं।
(6) चट्टान बाँध- यह जल के प्रवाह को कम करने में मदद करते हैं। यह नालियों की रक्षा करते हैं तथा मृदा की क्षति को रोकते हैं।
(7) बीच की फसल उगाना- इस विधि के अन्तर्गत वर्षा दोहन से मृदा को सुरक्षित रखने के लिए अलग-अलग समय पर भिन्न-भिन्न फसलें एकांतर कतारों में उगाई जाती हैं।