(c) दीप्तिकालिता की प्रक्रिया को यह संज्ञा सर्वप्रथम गार्नर एवं एलार्ड ने सन् 1920 में दी। उनके अनुसार जब तक पौधे को प्रकाश की उचित अवधि नहीं मिलती उनमें पुष्पन नहीं होता है। इस प्रकार कुछ पौधों की दीप्तिकालिता, पुष्पन को निंयत्रित करती है। दीप्तिकालिता के आधार पर पौधों के 3 वर्ग हाते हैं - अल्पप्रदीप्तकाली, दीर्घ प्रदीप्तकाली और दिवस - निरपेक्ष पौधे। दीप्तिकालिता पर प्रयोग करते हुए ही रूसी वैज्ञानिक चेलख्यान (1936) ने 'फ्लोरीजेन' नामक संज्ञा एक पादप हार्मोन को दी।