आज यह प्रथा-सी’ चल गई है कि पढ़-लिखकर अपना गृह गाँव छोड़कर लोग अन्यत्र नौकरी पर चले जाते हैं । वहाँ विभिन्न स्थानों और परंपरा रिवाजों वाले लोग रहते हैं । उनके रहन-सहन और खाने-पीने में भी समानता नहीं रहती । अत: पड़ोसी होकर भी व्यक्ति एक-दूसरे के पर्व-त्योहार में हिस्सा नहीं ले पाता आर इधर अपने गाँव-नगर के त्योहार तो छूट ही जाते हैं। इन्हीं कारणों से सांस्कृतिक पर्यावरण को क्षति होती हे ।