यह कृषि जंगलों में निवास करने वाले आदिवासी एवं पिछड़ी जातियों द्वारा की जाती है। इसमें वनों को जलाकर भूमि साफ करके, दो-तीन वर्षों तक कृषि की जाती है और जब मिट्टी की उर्वरा शक्ति समाप्त हो जाती है तो उस भूमि को छोड़कर यही प्रक्रिया दूसरे क्षेत्रों में अपनाई जाती है। इसे स्थानान्तरित कृषि के नाम से भी जाना जाता है।