उदयसिंह के ज्येष्ठ पुत्र राणा प्रताप का राज्याभिषेक 28 फरवरी, 1572 ई. को हुआ। शासन भार ग्रहण करते ही उन्हें अनेकानेक कठिनाइयों से जूझना पड़ा, जैसे--मुगल शासक अकबर की मेवाड़ पर अधिकार करने की इच्छा, मेवाड़ की आर्थिक एवं सैन्य शक्ति को सुदृढ़ करना, भाई जगमाल का नाराज होकर अकबर से जा मिलना आदि। इन सब के बावजूद महाराणा प्रताप ने कभी घुटने नहीं टेके। उन्होंने मुगलों को लगातार चुनौती दी, अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया।
महाराणा प्रताप अपनी वीरता और युद्ध कला के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अपने व्यक्तित्व से मेवाड़ के प्रत्येक व्यक्ति को मातृभूमि की स्वतंत्रता एवं अक्षुण्णता हेतु सब कुछ न्यौछावर कर देने वाला योद्धा बना दिया। इसके साथ ही उन्होंने मानवाधिकारों का भी पोषण किया और प्रजा के सुख-दु:ख का बराबर ध्यान रखा। महाराणा प्रताप ने संकटकाल में भी कृषि और वनों के विकास का प्रयास किया तथा इन विषयों पर आधारित 'विश्व वल्लभ' जैसी पुस्तक भी लिखवाई।