पृथ्वीराज रासो के आदिपर्व में, पृक्वीराज चौहान के गुणों का वर्णन किया गया है। महाराज सोमेश्वर के पूर्व जन्मों की तपस्या के फलस्वरूप ही, पृथ्वीराज जैसे गुणी पुत्र का उनके घर जन्म हुआ। पृथ्वीराज चौहान की तुलना उस समय महान परमार राजा विक्रमादित्य परमार से की गई है। निःसंदेह पृथ्वीराज 32 गुणों से सुशोभित एक महान राजा थे। बाल्यकाल से ही इस वीर ने, अपने पराक्रम का डंका शक्तिशाली साम्राज्यों के बीच बजा दिया। पृथ्वीराज चौहान को विशाल साम्राज्य अपने तातश्री विग्रहराज चौहान से विरासत में मिला था। लगभग 1168 ई. में पृथ्वीराज चौहान का 15 वर्ष की अल्पायु में राजतिलक किया गया, उनकी संरक्षिका थीं उनकी स्वयं की माता कर्पूरदेवी। एक विशाल साम्राज्य पृथ्वीराज के पास पूर्व से ही था, अब तो समय दिग्विजय करने का था। इस दिग्विजय को पूर्ण करने के सामने बड़ी शक्ति थी चंदेल, कीर्तिसागर के मैदान पर चंदेलों और चौहानों के बीच बड़ा भयकर युद्ध हुआ। दोनों पक्षों की ओर से भारी जन-धन की हानि हुई। अंततः इस युद्ध में पृथ्वीराज विजयी हुए तथा चंदेलों ने चौहानों की प्रभुता स्वीकार कर ली। इसके पश्चात् पृथ्वीराज ने चालुक्यों को परास्त किया और अपनी प्रतिज्ञा पूरी करते हुए अपने पिता के हत्यारे भीमदेव का शीष धड़ से अलग कर दिया। इस प्रकार, वे लगातार विजय प्राप्त करते गए।