राजा ज्ञानेन्द्र द्वारा लोकतान्त्रिक सरकार को भंग करना-नेपाल के नए राजा ज्ञानेन्द्र लोकतान्त्रिक शासन को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने सन् 2005 की फरवरी में तत्कालीन प्रधानमन्त्री को अपदस्थ करके जनता द्वारा निर्वाचित सरकार को भंग कर दिया।
आन्दोलन का प्रारम्भ तथा उसका उद्देश्य अप्रेल, 2006 में आन्दोलन उठ खड़ा हुआ, जिसका लक्ष्य था-शासन की बागडोर राजा के हाथ से लेकर दोबारा जनता के हाथों में सौंपना।
आन्दोलन का स्वरूप संसद की सभी बड़ी पार्टियों ने सप्तदलीय गठबन्धन-एस.पी.ए.-बनाया और नेपाल की राजधानी काठमांडू में चार दिन बंद का आह्वान किया। इस प्रतिरोध ने जल्दी ही अनियतकालीन बंद का रूप ले लिया। अन्य राजनीतिक संगठन तथा जनता भी बंद के समर्थन में आ गये। 21 अप्रैल, 2006 के दिन आन्दोलनकारियों की संख्या 3-5 लाख तक पहुँच गई। इन्होंने राजा को माँगें मानने के लिए 3 दिन की चेतावनी दी।
प्रमुख माँगें-आन्दोलनकारियों की तीन प्रमुख माँगें ये थीं-(i) संसद को बहाल किया जाए, (ii) सर्वदलीय सरकार बने तथा (iii) एक नयी संविधान सभा का गठन हो। माँगों को राजा द्वारा स्वीकार करना-24 अप्रैल, 2006 को राजा ने आन्दोलनकारियों की उक्त तीनों मांगों को स्वीकार कर लिया।
इस संघर्ष को नेपाल का लोकतन्त्र के लिए दूसरा आन्दोलन कहा जाता है।