नेपाल तथा बोलिविया में हुए लोकप्रिय जन-आन्दोलनों से हम निम्नलिखित निष्कर्ष निकाल सकते हैं-
(1) जन-संघर्ष के माध्यम से लोकतन्त्र का विकास-लोकतन्त्र का जन-संघर्ष के माध्यम से विकास होता है। लोकतन्त्र की निर्णायक घड़ी प्रायः वही होती है जब सत्ताधारियों और सत्ता में हिस्सेदारी चाहने वालों के बीच संघर्ष होता है। ऐसी घड़ी तब आती है जब कोई देश लोकतन्त्र की ओर कदम बढ़ा रहा हो; उस देश में लोकतन्त्र का विस्तार हो रहा हो या वहाँ लोकतन्त्र की जड़ें मजबूत हो रही हों।।
(2) जनता की व्यापक लामबंदी से संघर्ष का समाधान-लोकतान्त्रिक संघर्ष का समाधान जनता की व्यापक लामबंदी के जरिए होता है। जब विवाद अधिक गहन हो जाते हैं तो सरकार के संगठन भी उसका हिस्सा बन जाते हैं। ऐसे में समाधान इन संस्थाओं के जरिए नहीं बल्कि उनके बाहर यानी जनता के माध्यम से होता है।
(3) संघर्ष और लामबंदियों का आधार राजनीतिक संगठन-ऐसे संघर्ष और लामबंदियों का आधार राजनीतिक संगठन होते हैं। जनता की स्वतःस्फूर्त सार्वजनिक भागीदारी संगठित राजनीति के जरिए ही कारगर हो पाती है। संगठित राजनीति के माध्यमों में राजनीतिक दल, दबाव-समूह और आन्दोलनकारी समूह शामिल हैं।