बिहार के प्राकृतिक संसाधन निम्नलिखित हैं
(क) मिट्टी
(ख) खनिज
(ग) वन और वन्य प्राणी तथा
(घ) जल या जलशक्ति।
मिटटी का वितरण बिहार के मैदानी भाग में सर्वत्र वाहित मिट्टियाँ पाई जाती हैं। अति प्राचीन काल में उत्तरी मैदान में सागर था, जो नदियों के द्वारा लाई गई और जमा की कई मिट्टियों से भरकर समतल मैदान बन गया। इस वाहित मिट्टी को जलोढ़ मिट्टी के नाम से पुकारा जाता है। इसे कई उपवर्गों में बांटा गया है
(i) तराई या दलदली क्षेत्र की जलोढ़ मिट्टी इसका वितरण सबसे उत्तर में 5 से 10 किलोमीटर चौड़ी पट्टी में मिलता है। हिमालय की तराई होने, घनी वर्षा होने और घने पेड़-पौधों से भरा होने के कारण इस क्षेत्र में बहुत अधिक नमी बनी रहती है। इस मिट्टी में चूने का अंश कम होता है। रंग गाढा भूरा होता है, यह बहुत उपजाऊ नहीं होती है। इसमें धान, जूट, गन्ना आम
और लीची की खेती की जाती है।
(ii) बाँगर या परानी जलोढ मिटटी इसका वितरण गंडक नदी के पूर्वी और पश्चिमी दोनों क्षेत्र में पाया जाता है। इस मिट्टी में चूना-कंकड़ अधिक मिलता है। मिट्टी का रंग भूरा और कालिमा लिए हुए होता है। यह गन्ने की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इसमें मकई, जौ, गेहूँ की भी खेती की जाती है।
(iii) खादर या नई जलोढ मिट्टी इसका वितरण बूढ़ी गंडक के पूरब में है। यह दोमट मिट्टी है। यह क्षेत्र बाढ़ग्रस्त रहा करता है। इसमें जूट की खेती की जाती है। इसके पश्चिमी भाग में गन्ने की खेती की जाती है। धान की भी अच्छी खेती की जाती है।
(iv) गंगा के दक्षिणी मैदान की केवाल मिटटी यहां पश्चिमी भाग में बाँगर मिट्टी मिलती है। पूर्व के निम्न भागों में ताल जैसे बड़हिया का ताल मिलता है, जो दलहन की पैदावर के लिए विख्यात है। यही मिट्टी दोमट और केवाल किस्म की है।