राजस्थान में कृषि विपणन: किसानों को अपनी पैदा की गई फसल को बेचने में कठिनाई का सामना करना पडता था। स्थानीय स्तर पर फसल बेचने हेतु काफी प्रयास करने पड़ते थे। यदि कोई फसल खरीदने को तैयार भी होता, तो उपज का मूल्य काफी कम देना चाहता। इस कारण किसानों को काफी परशानी का सामना करना पड़ता था। यदि फसल की पैदावार अच्छी हो जाती, तो उचित दाम मिलने में दिक्कत आती थी। इस तरह की स्थिति का निवारण करने हेतु सरकार द्वारा कृषि उपज मंडियों की व्यवस्था की गई।
कृषि उपज मंडी: यह सरकार द्वारा स्थापित एक ऐसा बाजार है, जहाँ कृषि उपज को खरीदा और बेचा जाता है। यहाँ कृषि जिंसों की बिक्री और खरीद की सुविधा प्रदान की जाती है। इन मंडियों के माध्यम से किसानों को अपनी उपज का उचित मूल्य दिलवाने का प्रयास किया जाता है। ये मंडियाँ नियमों के आधार पर संचालित होती हैं, इसलिए इन्हें विनियमित बाजार भी कहा जाता है। इन बाजारों का विनियमन कृषि विपणन बाजार समिति द्वारा किया जाता है।
कृषि विपणन-इसके अंतर्गत वे सभी गतिविधियाँ या सेवाएँ आती हैं जो कृषि को खेत से लेकर उपभोक्ता तक पहुंचाने में करनी पड़ती हैं, जैसे—परिवहन, प्रसंस्करण, भण्डारण, ग्रेडिंग आदि। राजस्थान में कृषि विपणन मंडियों की स्थापना तथा विकास हेतु राजस्थान राज्य कृषि विपणन बोर्ड की स्थापना सन् 1974 में की गई। इसके पश्चात् बिचौलियों से किसानों का बचाव कर उचित मूल्य पर उनकी उपज को बेचने की सुविधा प्रदन की गई। किसान अपनी फसलों को मंडियों में ले जाते हैं, जहाँ बोली लगाई जाती है तथा सही दाम पर फसलों को खरीदा जाता है। बड़ी मंडियों में दैनिक बाजार भावों की जानकारी मुहैया करवायी जाती है। सरकार ने कई मंडियों को ऑनलाइन भी कर दिया है जिससे कि उपज के मूल्य घर बैठे प्राप्त कर सकते हैं।
आढ़तियों की भूमिका: लगभग सभी मंडियों में किसानों | की सहायता हेतु आढ़तिये भी होते हैं। ये आढ़तिये दो तरह | के होते हैं
(i) कच्चे आढ़तिये: वे आढ़तिये जो किसानों की उपज को | मंडी में बनी अपनी दुकानों पर बेचते हैं और अपनी आढ़त या कमीशन काटकर किसान को उसकी उपज के सही | मूल्य का भुगतान कर देते हैं। ...
(ii) पक्के आढ़तिये: वे आढ़तिये जो कच्चे आढ़तियों से | थोक व्यापारियों या मिल वालों के लिए उपज का क्रय करते हैं एवं सामग्रियों का संग्रह करते हैं।
न्यूनतम समर्थन मूल्य: यदि किसानों को कृषि उपज मंडियों में उनकी उपज का सही मूल्य भुगतान करने वाले क्रेता नहीं मिलते, तो सीधे सरकार द्वारा उनकी उपज को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद लिया जाता है। इस तरह के प्रत्यक्ष प्रयास द्वारा सरकार किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य प्रदान करती है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली: एक ओर जहाँ सरकार नियमित कृषि मंडियों के माध्यम से किसानों को उचित मूल्य दिलवाने का प्रयास करती है। वहीं दूसरी ओर, सरकार आम उपभोक्ता तक कृषि उपज एवं अन्य खाद्य वस्तुओं को पहुँचाने का भी प्रयास करती है। इसके लिए सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था की है।
उचित मूल्य की दुकान: इसके माध्यम से सरकार द्वारा किसानों से खरीदी गई कुछ उपजों, विशेषकर अनाजों को गरीब उपभोक्ताओं तक पहुँचाने का प्रयास किया जाता है। इससे सभी को खाद्य सुरक्षा के लक्ष्य की पूर्ति में सहायता प्राप्त होती है। यह कार्य खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामला विभाग द्वारा संपादित किया जाता है।