यदि नारी शरीर में निषेचन नहीं हो, तो अंड कोशिका लगभग एक दिन तक जीवित रहती है। अंडाशय हर महीने एक अंड का मोचन करता है और निषेचित अंड की प्राप्ति हेतु गर्भाशय भी हर महीने तैयारी करता है और इसलिए यह अपनी अंतः भित्ति मांसल एवं स्पोंजी बना लेता है। यह अंड के निषेचन होने की अवस्था में उसके पोषण के लिए आवश्यक है। लेकिन अंड के मोचन के पश्चात निषेचन न हो तो इस अवस्था में इस पर्त की भी आवश्यकता नहीं रहती। इसलिए यह पर्त धीरे-धीरे टूट कर योनि मार्ग से रुधिर एवं म्यूकस के रूप में बाहर निकल जाती है। इस चक्र में लगभग एक मास का समय लगता है। इसे ऋतुस्राव अथवा रजोधर्म कहते हैं। इसकी अवधि लगभग 2 से 8 दिनों की होती है।