वर्तमान समय में ऊर्जा के ऐसे कई स्रोत खोज लिए गए हैं जिनके भंडार असीमित हैं । ये कभी खत्म नहीं हो सकते हैं । इसलिए इन स्रोतों को अक्षय स्रोत या नवीकरणीय स्रोत कहे जाते हैं । इन स्रोतों में सौर ऊजा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा एवं जैव ऊर्जा आदि शामिल हैं।
भारत में प्रतिवर्ग 20 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पन्न करने की क्षमता है । सोलर प्लेटों की सहायता से सूरज की गर्मी से उत्पन्न की जानेवाली ऊर्जा को सौर ऊर्जा कहा जाता है । इसका सबसे बड़ा संयंत्र गुजरात के भुज में लगाया गया है ।
पृथ्वी के अंतर प्रति 32 किलोमीटर की गहराई पर 1°C तापमान की वृद्धि होती जाती है । इस दृष्टि से पृथ्वी के भीतर ऊर्जा या ताप संग्रहित है । इस ऊर्जा को विशेष तकनीक द्वारा पृथ्वी के ऊपर लाकर विद्युत उत्पन्न की जाती है। जिसे भूतापीय ऊर्जा कहा जाता है। हिमाचल प्रदेश के मणिकरण, लद्दाख के पूगा घाटी तथा मध्य प्रदेश के तातापानी में इसके संयंत्र लगे हैं ।
तेज बहते हुए पवन से ऊर्जा का उत्पादन पवन ऊर्जा कहलाता है । देश के गुजरात, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक में इसके दोहन की अच्छी संभावनाएं हैं। भारत में पवन ऊर्जा की उत्पादन क्षमता 50 हजार मेगावाट है । गुजरात के लांबा में एशिया का सबसे बड़ा संयंत्र लगाया गया है । तमिलनाडु के तूतीकोरिन में भी पवन-फार्म लगाए गए हैं।
तटीय भागों में आनेवाले ज्वार से पैदा की जानेवाली ऊर्जा ज्वारीय ऊर्जा है। भारत के तटीय भागों में इसके विकास की असीम संभावनाएँ हैं । अनुमान है कि देश में 8000-9000 मेगावाट संभाव्य ज्वारीय ऊर्जा है । खंभात की खाड़ी इसके लिए सबसे अनुकूल है । कच्छ की खाड़ी और सुंदरवन क्षेत्र में भी ज्वारीय ऊर्जा का उत्पादन की संभावना है।