विभिन्नताओं में सामंजस्य और टकराव-आज अधिकतर देशों में कई तरह की विभिन्नताएँ पाई जाती हैं। ये विभिन्नताएँ जाति, धर्म, वर्ग, नस्ल, भाषा, संस्कृति आदि अनेक आधारों पर हो सकती है। देश बडा हो या छोटा इसस भी विभिन्नताओं पर कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता है। सामाजिक विभाजन तब होता है जब कुछ सामाजिक विभिन्नता दूसरी अनेक-विभिन्नताओं से ऊपर और बड़ी हो जाती है। विभिन्नताओं में सामंजस्य और टकराव को निम्न उदाहरणों द्वारा समझा जा सकता है-
(1) अमरीका में श्वेत और अश्वेत का अंतर एक सामाजिक विभाजन भी बन जाता है क्योंकि अश्वेत लोग आमतौर पर गरीब हैं, बेघर हैं, भेदभाव का शिकार हैं।
(2) भारत में भी दलित आमतौर पर गरीब और भूमिहीन हैं। उन्हें भी अक्सर भेदभाव और अन्याय का शिकार होना पड़ता है। जब यह सामाजिक अंतर अन्य अंतरों से ज्यादा महत्वपूर्ण बन जाता है और लोगों को यह महसूस होने लगता है कि वे दूसरे समुदाय के हैं तो इससे सामाजिक विभाजन की स्थिति पैदा होती है।
(3) अगर एक-सी सामाजिक असमानताएँ कई समूहों में मौजूद हों तो फिर एक समूह के लोगों के लिए दूसरे समूहों से अलग पहचान बनाना मुश्किल हो जाता है। इससे किसी एक मुद्दे पर कई समूहों के हित एक जैसे हो जाते हैं जबकि किसी दूसरे मुद्दे पर उनके नजरिए में अंतर हो सकता है। जैसे उत्तरी आयरलैंड और नीदरलैंड दोनों ही ईसाई बहुल देश हैं लेकिन यहाँ के लोग प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक समुदाय में बँटे हैं। उत्तरी आयरलैंड में वर्ग और धर्म के बीच गहरी समानता है। वहाँ का कैथोलिक समुदाय गरीब है और प्रोटेस्टेंट समुदाय धनी है। कैथोलिकों के साथ लंबे समय से भेदभाव होता आया है। नीदरलैंड में वर्ग और धर्म के बीच ऐसा मेल दिखाई नहीं देता। वहाँ कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट, दोनों में अमीर और गरीब हैं। इस कारण जहाँ उत्तरी आयरलैंड में कैथोलिकों और प्रोटेस्टेंटों के बीच भारी मारकाट चलती रही है वहाँ नीदरलैंड में ऐसा नहीं होता।
इस प्रकार जब सामाजिक विभिन्नताएँ एक-दूसरे से गुंथ जाती हैं तो एक गहरे सामाजिक विभाजन की जमीन तैयार होने लगती है। जहाँ ये सामाजिक विभिन्नताएँ एक साथ कई समूहों में विद्यमान होती हैं वहाँ उन्हें सँभालना अपेक्षाकृत आसान होता है।