अपनी जमीन और जंगलों से बिछुड़ने पर आदिवासी समुदाय आजीविका और भोजन के अपने मुख्य स्रोतों से वंचित हो जाते हैं। अपने परम्परागत निवास स्थानों के छिनते जाने की वजह से बहुत सारे आदिवासी काम की तलाश में शहरों का रुख कर रहे हैं। वहाँ उन्हें छोटे-मोटे उद्योगों, इमारतों या निर्माण स्थलों पर बहुत मामूली वेतन वाली नौकरियाँ करनी पड़ती हैं। इस तरह वे गरीबी और लाचारी के जाल में फँसते चले जाते हैं। विस्थापित होने के कारण अपनी आय के स्रोतों को गँवाने के साथ-साथ वे अपनी परम्पराएँ और रीति-रिवाज भी गंवा देते हैं जो उनके जीने और अस्तित्व के स्रोत हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में 45% और शहरी क्षेत्रों में 35% आदिवासी गरीबी की रेखा के नीचे गुजर बसर करते हैं। उनके बहुत सारे बच्चे कुपोषण के शिकार हो जाते हैं। उनके बीच साक्षरता भी बहुत कम है।