1919 से 1945 के बीच विकसित होने वाले राजनैतिक और आर्थिक सम्बन्धों पर । टिप्पणी लिखें।
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1920 के बाद जो भी अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध विकसित हुए। उसमें आर्थिक कारकों का महत्वपूर्ण स्थान था। 1929 के आर्थिक मंदी को आधार वर्ष मानकर 1919-1945 के बीच बनने वाले आर्थिक सम्बन्धों को दो भागों में बाँटा जा सकता है।
1920 से 1929 तक का काल सामान्यतः आर्थिक समुत्थान और विकास का काल था! प्रथम विश्वयुद्ध के बाद विश्व पर से यूरोप का प्रभाव क्षीण हो गया। यद्यपि उपनिवेशों (एशिया-अफ्रीका) पर उसकी पकड़ बनी रही लेकिन इस दौर में सं. रा. अमेरिका, जापान और सोवियत रूस ये तीन देश विश्व की सर्वप्रमुख्न शक्ति के रूप में उभरे। सं. रा. अमेरिका में युद्ध के तुरंत बाद का दो वर्ष आर्थिक संकट का काल था। परंतु 1922 के बाद तकनीकी उन्नति के कारण औद्योगिक विकास हुआ। परन्तु इसका एक नकारात्मक परिणाम देखने को मिला कि देश की आर्थिक शक्ति और सता कुछ हाथों और कम्पनियों के पास केन्द्रित हो गयी।
रूस और जापान ने 1920-1929 के बीच आर्थिक क्षेत्र में काफी प्रगति की। जापान अपनी आर्थिक प्रगति को बनाए रखने के लिए साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा को आक्रामक रूप दिया जिसका शिकार चीन हुआ। इसी समय भारत एवं अन्य और निवेशिक देशों में राष्ट्रीय चेतना का प्रसार हुआ।
इस काल में नए राजनैतिक संबंधों का भी विकास हुआ। 1932 ई. में अमेरिकी राजनीति में फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट का उदय हुआ। उसने ‘न्यू डील” नामक नवीन आर्थिक नीतियों को अमेरिका में लागः उसके अन्तर्गत रेलमार्ग, सड़क, पुल स्थानीय विकास हेतु ऋण वितग्नि किया गया। औद्योगिक क्षेत्र में व्यापार और उत्पादन का नियमन, मजदूरी में वृद्धि, काम के घण्टे तथ करना, मूल्यों में वृद्धि रोकना इत्यादि सम्मिलित थे। कृषि क्षेत्र में किसानों की क्रय शक्ति तथा सामान्य आर्थिक स्थिति को युद्ध के पूर्व के स्तर तक ले जाने का प्रयास हुआ।
आर्थिक मंदी के आलोक में यूरोप की राजनैतिक स्थिति में दो महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। एक रूस में स्थापित साम्यवादी आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था का आकर्षण सम्पूर्ण विश्व में बढ़ा क्योंकि वही एक देश था, जिसपर इस मंदी का प्रभाव बिल्कुल नहीं पड़ा इससे उसका प्रभाव बहुत बढ़ा। इटली और जर्मनी में लोकतंत्र की विफलता और अधिनायकवादी तथा तानाशाही तंत्र के उदय ने यूरोप के कई और देशों को अपने लपेटे में ले लिया जैसे-स्पेन, आस्ट्रिया, यूनान इत्यादि। यूरोप में आर्थिक मंदी के बाद उदित होने वाली राजनैतिक व्यवस्था ने अपनी नीतियों से द्वितीय महायुद्ध को अवश्यम्भावी बना दिया।
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