1929 ई. की आर्थिक महामंदी के निम्नलिखित कारण थे
(i) बुनियादी कारण-1929 के आर्थिक संकट का बुनियादी कारण स्वयं इस अर्थव्यवस्था के स्वरूप में ही समाहित था। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद बाजार आधारित अर्थव्यवस्था का विस्तार हुआ तो दूसरी तरफ अधिकांश जनता गरीबी और अभाव में पिसती रही। नवीन तकनीकी प्रगति के कारण उत्पादन में तो भारी वृद्धि हुई लेनिन उत्पादित वस्तुओं के खरीदार बहुत कम थे।
(ii) कृषि उत्पादन एवं खाद्यानों के मूल में कमी-बढ़े हुए कृषि उत्पाद के खरीदार नहीं मिलने के कारण कृषि उत्पादों की कीमतें काफी गिर गयी जिससे किसानों की आय घट गयी। प्रमुख अर्थशास्त्री काडलिफ ने अपनी पुस्तक “दि कॉमर्स ऑफ नेशन” में लिखा कि विश्व के सभी भागों में कृषि उत्पादन एवं खाद्यानों के मूल की विकृति 1929-32 के आर्थिक संकटों के प्रमुख कारण थे।
(iii) यूरोपीय देशों के बीच संकुट-प्रथम विश्वयुद्ध के बाद यूरोप के बहुत सारे देशों में अपनी तबाह हो चुकी अर्थव्यवस्था को नए सिरे से विकसित करने के लिए अमेरिका से कर्ज लिया। अमेरिकी पूँजीपतियों ने कर्ज तो दिए लेकिन जब अमेरिका में घरेलु संक्रट के संकेत मिले तो वे कर्ज वापस माँगने लगे। इस परिस्थिति से यूरोपीय देशों के बीच गंभीर आर्थिक संकट खड़ा हो गया। परिणामस्वरूप यूरोप के कई बैंक डूब गये तथा कई देशों के मुद्रा मुल्य गिर गया।
(iv) सट्टेबाजी की प्रवृत्ति- इन उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त अमेरिकी बाजारों में शुरू हुआ सट्टेबाजी की प्रवृत्ति भी आर्थिक मंदी में निर्णायक भूकिा निभाई। प्रथम महायुद्ध के पश्चात् अमेरिका की आर्थिक समृद्धि में वृद्धि के परिणामस्वरूप वहाँ के पूँजीपति अतिरिक्त पूँजी को सट्टा ।। लगाने की ओर आकर्षित हुए। शुरू में तो काफी लाभ हुआ बाद में संकट उभरकर सामने आ गया।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव-आर्थिक मंदी का प्रभाव विश्वव्यापी था। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। भारत पर आर्थिक मंदी के निम्नलिखित प्रभाव पड़े –
(i) व्यापार में गिरावट-महामंदी के पूर्व वैश्विक अर्थव्यवस्था में आयातक और निर्यातक के रूप में भारत की महत्वपूर्ण भागीदारी थी। महामंदी का प्रभाव इस आयात-निर्यात व्यापार पर पड़ा। यह काफी घट गया। 1928-34 के मध्य आयात-निर्यात घटकर आधा रह गया।
(ii) कृषि उत्पादों के मूल्य में कमी-विश्व बाजार में कृषि उत्पादों के मूल्य में कमी आने के पश्चात भारतीय कृषि उत्पादों के मूल्य में भी गिरावट आई। 1928-1934 के मध्य गेहूँ की कीमत में 50 प्रतिशत की कमी आई।
(iii) किसानों की दयनीय स्थिति-महामंदी का सबसे बुरा प्रभाव किसानों पर पड़ा। मूल्य में कमी आने तथा बिक्री कम हो जाने से उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय बन गई। वे लगान चुकाने में असमर्थ हो गए लेकिन सरकार ने न तो लगान की राशि घटाई और न ही लगान माफ की। जिससे किसानों में असंतोष की भावना बढ़ी। इसी आर्थि संकट के कारण महात्मा गांधी ने भारत में व्यापक सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ किया।