आर्थिक कार्यों के आधार पर अर्थव्यवस्था को तीन प्रमुख क्षेत्रकों में विभाजित किया जा सकता है।
(1) प्राथमिक क्षेत्रक- जब हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं तो इसे प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधि कहा जाता है। इस क्षेत्रक में मुख्य रूप से कृषि, पशुपालन, डेयरी, मत्स्यन, वन उत्पाद आदि को सम्मिलित किया जाता है। भारतीय अर्थव्यवस्था में रोजगार की दृष्टि से प्राथमिक क्षेत्रक की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
(2) द्वितीयक क्षेत्रक- किसी देश में द्वितीयक क्षेत्रक की गतिविधियों के अन्तर्गत प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रणाली के जरिए अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है। इस क्षेत्रक में विनिर्माण की प्रक्रिया अपरिहार्य है। यह प्रक्रिया किसी कारखाने अथवा घर से संचालित की जा सकती है। यह क्षेत्रक क्रमश: संवर्धित विभिन्न प्रकार के उद्योगों से जुड़ा हुआ है अतः इसे औद्योगिक क्षेत्रक भी कहा जाता है।
(3) तृतीयक क्षेत्रक- तृतीयक क्षेत्रक में उन गतिविधियों को शामिल किया जाता है जो स्वतः वस्तुओं का उत्पादन नहीं करती हैं, बल्कि उत्पादन प्रक्रिया में सहयोग करती हैं। इस क्षेत्रक में विभिन्न गतिविधियाँ वस्तुओं के बजाय सेवाओं का सृजन करती हैं। अतः इस क्षेत्रक को सेवा क्षेत्रकं भी कहा जाता है। इस क्षेत्रक में मुख्य रूप से परिवहन, भण्डारण, संचार, बैंकिंग, वित्त, व्यापार आदि गतिविधियों को शामिल किया जाता है।