कम्पनी का सर्वोच्चता का दावा - (1) भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी उन्नीसवीं सदी की शुरुआत से क्षेत्रीय विस्तार की आक्रामक नीति पर चल रही थी। 1813 से 1823 तक गवर्नर जनरल रहे लॉर्ड हेस्टिंग्स के नेतृत्व में 'सर्वोच्चता' की एक नयी नीति शुरू की गई।
(2) कम्पनी ने दावा किया कि उसकी सत्ता सर्वोच्च है इसलिए वह भारतीय राज्यों से ऊपर है। अपने हितों की रक्षा के लिए वह भारतीय रियासतों का अधिग्रहण करने या उनको अधिग्रहण की धमकी देने का अधिकार अपने पास मानती थी। यही दावा कम्पनी की 'सर्वोच्चता का दावा' है। अंग्रेजों की बाद की नीतियों में भी यही सोच दिखायी देती रही। इस नीति के तहत अंग्रेजों ने अपने साम्राज्य को फैलाया।
(3) कई राज्यों ने उनके सर्वोच्चता के दावे का विरोध किया। उदाहरणार्थ जब अंग्रेजों ने कित्तूर (कर्नाटक) के छोटे से राज्य को कब्जे में लेने का प्रयास किया तो रानी चेन्नम्मा ने अंग्रेजों के खिलाफ आन्दोलन छेड़ दिया। 1824 में उन्हें गिरफ्तार किया गया और 1829 में जेल में ही उनकी मृत्यु हो गई। चेन्नम्मा के बाद कित्तूर स्थित संगोली के एक गरीब चौकीदार रायन्ना ने यह प्रतिरोध जारी रखा। चौतरफा समर्थन और सहायता से उन्होंने बहुत सारे ब्रिटिश शिविरों और दस्तावेजों को नष्ट कर दिया था। आखिरकार उन्हें भी अंग्रेजों ने पकड़कर 1830 में फाँसी पर लटका दिया।
(4) 1830 के दशक के अन्त में ईस्ट इण्डिया कम्पनी को भय था कि कहीं रूस का प्रभाव पूरे एशिया में फैलकर उत्तर-पश्चिम से भारत को अपनी चपेट में न ले ले। अतः अंग्रेज अब उत्तर-पश्चिमी भारत पर भी अपना नियन्त्रण स्थापित करना चाहते थे।
(5) उन्होंने 1838 से 1842 के बीच अफगानिस्तान के साथ एक लम्बी लड़ाई लड़ी और वहाँ अप्रत्यक्ष कम्पनी शासन स्थापित कर लिया। 1843 में सिन्ध पर भी कब्जा कर लिया। पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह ने कम्पनी का कड़ा प्रतिरोध किया। 1839 में उनकी मृत्यु के बाद इस रियासत के साथ दो लम्बी लड़ाइयाँ हुईं और अन्त में 1849 में अंग्रेजों ने पंजाब का भी अधिग्रहण कर लिया।