भारत में होने वाली मौनसूनी वर्षा दो प्रकार की हैं(i) शीतकालीन वर्षा (ii) ग्रीष्म कालीन वर्षा
(i) शीतकालीन वर्षा-भारत में शीतकालीन वर्षा के सीमित क्षेत्र . हैं । लौटती मौनसून तथा उत्तरी पूर्वी मौनसून से भारत के पूर्वी तटीय भाग, तमिलनाडु तथा केरल में वर्षा होती है। स्थल से चलने वाली यह हवा जब बंगाल की खाड़ी से होकर गुजरती है तो नमी धारण कर लेती है जिससे वह वर्षा करती है। दक्षिण-पश्चिम से चलने वाली हवा भारत में प्रवेश कर राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश तथा बिहार में वर्षा करती है । यह पश्चिमी विक्षोभ के कारण होता है। वर्षा पश्चिम से पूरब की ओर घटती जाती है।
(ii) ग्रीष्मकालीन वर्षा-भारत में ग्रीष्मकालीन वर्पा दक्षिण पश्चिम मौनसून हवा से होती है । दक्षिण-पश्चिम मौनसून हवा दो शाखाओं में बँटकर आगे बढ़ती है। एक शाखा अरब शाखा है जिससे भारत के पश्चिम तटीय भाग तथा पश्चिमी घाट पर्वत के पश्चिमी ढाल पर भारी वर्षा होती है।
दूसरी शाखा बंगाल की खाड़ी शाखा है। इस शाखा से अंडमान निकोबार द्वीपों में भारी वर्षा होती है। आगे बढ़ने पर मॉनसूनी वर्पा पूर्वांचल एवं मेघालय के बीच पहुँचकर पश्चिम की ओर मुड़ जाती है तथा पूर्वोत्तर भारत एवं गंगा ब्रह्मपुत्र के मैदान में भारी वर्षा करती है। ज्यों-ज्यों यह पश्चिम की ओर बढ़ती है, वर्षा कम होती जाती है। जून से सितम्बर के बीच कोलकाता में 118 सें.मी., पटना में 100 सें.मी., इलाहाबाद में 90 सें.मी. तथा दिल्ली में 55 सें.मी. तथा वार्षिक वर्षा 1187 सें.मी. होती है.। लेकिन राजस्थान पहुँचते-पहुँचते वार्षिक वर्षा मात्र 25 सें.मी. तक ही रह जाती है।
मौनसूनी वर्षा की विशेषताएँ –
(i) वर्षा का समय तथा मात्रा-भारत में मौनसूनी पवनों से प्राप्त वर्षा 87% मौनसूनी पवनों द्वारा जून से सितम्बर तक होती है । 3% वर्षा सर्दियों में तथा 10% वर्षा मौनसून आने के पहले तक हो जाती है । बाकी वर्षा जून से सितम्बर तक में होती है।
(ii) अस्थिरता-भारत में मौनसूनी पवनों से प्राप्त वर्षा भरोसे योग्य नहीं है। देश में असमान वर्षा होती है।
(iii) अनिश्चितता-वर्षा की मात्रा पूरी तरह निश्चित नहीं है। कभी मौनसून समय से पहले पहुँचकर भारी वर्षा करता है। कभी वर्षा इतनी कम होती है कि निश्चित समय से पहले ही समाप्त हो जाती है जिससे सूखे की स्थिति कायम हो जाती है।
(iv) शुष्क अंतराल-कई बार गर्मियों में मौनसूनी वर्षा लगातार न होकर कुछ दिन या सप्ताह अंतराल से होती है । इसके चलते वर्षा का चक्र टूट जाता है और वर्षा ऋतु में एक लंबा व शुष्क काल जमा हो जाता निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि मौनसूनी वर्षा अनिश्चित तथा असमान होती है। फिर भी भारत के लिए मौनसून वरदान है।