भारत में पाई जानेवाली विभिन्न प्रकार की बेकारी अग्रलिखित है-
(i) ग्रामीण बेरोजगारी-वैसी वेरोजगारी जो गाँवों में है। इसके भी दो प्रकार हैं
(क) मौसमी बेरोजगारी-मौसम में परिवर्तन द्वारा उत्पन्न बेकारी जैसे खेती के मौसम में काम मिलना और खेती का मौसम न होने पर बेकार हो जाना । गाँवों में रोपनी, पटौनी तथा कटनी के बाद कृषक मजदूर बैठ जाते हैं।
(ख) छिपी हुई बेरोजगारी-किसी काम में पाँच लोगों की आवश्यकता है लेकिन उनमें आठ लोग काम पर लगे होते हैं। इनमें तीन लोग अतिरिक्त हैं, इन तीनों द्वारा किया गया अंशदान पाँच लोगों द्वारा किए गये योगदान में वृद्धि नहीं करता, यानि कुल उत्पादकता में वृद्धि नहीं करता । इसे ही छिपी हुई बेरोजगारी कहते हैं।
(ii) शहरी बेरोजगारी-शहरों में पाई जानेवाली बेरोजगारी है । यह तीन तरह की होती हैं।
(क) शिक्षित बेरोजगारी-पढ़े-लिखे लोगों को जब रोजगार नहीं मिलता तब वह शिक्षित बेरोजगारी है ।
(ख) औद्योगिक बेरोजगारी-आधुनिक मशीनों के प्रयोग से बड़े-बड़े कारखानों से मजदूरों को हटाया जाना औद्योगिक बेरोजगारी है। कपड़ा मिलों से बड़ी संख्या में हैण्डलूम-बुनकर बेकार हो गए।
(ग) तकनीकी बेरोजगारी-अत्यधिक तकनीक के मशीनों के लगने से भी मजदूरों का हटाया जाना तकनीकी बेरोजगारी है। समाधान के उपाय-देंखे दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1 का तीसरा भाग।