भारत में वनों के प्रकार भारत में अधिकतर वन और वन्य जीवन या तो प्रत्यक्ष रूप से सरकार के अधिकार क्षेत्र में है या वन विभाग अथवा अन्य विभागों के माध्यम से सरकार के प्रबन्धन में है। प्रशासनिक आधार पर भारत में वनों को निम्नलिखित तीन भागों में बाँटा गया है-
(1) आरक्षित वन- ये वे वन हैं जो इमारती लकड़ी या वन उत्पादों को प्राप्त करने के लिए पूर्णतः सुरक्षित कर लिए गए हैं। इन वनों में पशुओं को चराने या खेती करने की अनुमति नहीं दी जाती है।
भारत के कुल वन क्षेत्र के आधे से अधिक वन क्षेत्र आरक्षित वन घोषित किये गये हैं। आरक्षित वनों को सर्वाधिक मूल्यवान माना जाता है। मध्य प्रदेश में स्थायी वनों के अन्तर्गत सर्वाधिक क्षेत्र है जो कि प्रदेश के कुल वन क्षेत्र का 75 प्रतिशत है। इसके अलावा जम्मू और कश्मीर, आंध्र प्रदेश, उत्तराखण्ड, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में भी कुल वनों में एक बड़ा अनुपात आरक्षित वनों का है।
(2) रक्षित वन- वन विभाग के अनुसार देश के कुल वन क्षेत्र का लगभग एक-तिहाई हिस्सा रक्षित वनों का है। इन वनों को और अधिक नष्ट होने से बचाने के लिए इनकी सुरक्षा की जाती है। इनका रख-रखाव इमारती लकड़ी और अन्य पदार्थों और उनके बचाव के लिए किया जाता है। इन वनों में पशुओं को चराने व खेती करने की अनुमति कुछ विशिष्ट प्रतिबन्धों के साथ प्रदान की जाती है। बिहार, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान में कुल वनों में रक्षित वनों का एक बड़ा अनुपात है।
(3) अवर्गीकत वन- देश में अन्य सभी प्रकार के वन और बंजर भूमि जो कि सरकार. व्यक्तियों और समदायों के स्वामित्व में होते हैं, अवर्गीकृत वन कहलाते हैं। पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में और गुजरात में अधिकतर वन क्षेत्र अवर्गीकृत वन हैं तथा स्थानीय समुदायों के प्रबंधन में हैं।