भारत में वन और वन्य जीवन का ह्रास-भारत में वन और वन्य जीवन के ह्रास के उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं-
(1) औपनिवेशिक काल की क्रियाएँ- भारत में वनों को सबसे बड़ा नुकसान उपनिवेश काल में रेल लाइनों के विस्तार, कृषि, व्यवसाय, वाणिज्य, वानिकी और खनन क्रियाओं में वृद्धि के फलस्वरूप हुआ।
(2) कृषि का विस्तार- देश में स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त वन संसाधनों के सिकुड़ने में कृषि का फैलाव महत्त्वपूर्ण कारकों में से एक रहा है। वन सर्वेक्षण के अनुसार देश में 1951 और 1980 के मध्य लगभग 26,200 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र कृषि भूमि में परिवर्तित किया गया।
(3) स्थानांतरी (झम) खेती- अधिकतर जनजातीय क्षेत्रों, विशेषकर पूर्वोत्तर भारत एवं मध्य भारत में स्थानांतरी (झूम) खेती अथवा 'स्लैश और बर्न' खेती के कारण वनों की कटाई अथवा वन निम्नीकरण हुआ है।
(4) विकास परियोजनाएँ- देश में बड़ी विकास परियोजनाओं ने भी वनों को बहुत अधिक हानि पहुँचाई है। 1952 से नदी घाटी परियोजनाओं के कारण 5000 वर्ग किमी. से अधिक वन क्षेत्रों को साफ करना पड़ा है और यह प्रक्रिया अभी भी जारी है। मध्यप्रदेश में 4,00,000 हैक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र नर्मदा सागर परियोजना के पूर्ण हो जाने पर जलमग्न हो जायेगा।
(5) खनन क्रियाएँ-देश में वनों के ह्रास में खनन ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। पश्चिमी बंगाल में बक्सा टाइगर रिजर्व डोलोमाइट के खनन के कारण गंभीर खतरे में है।
(6) पशुचारण और ईंधन की लकड़ी-अनेक वन अधिकारी और पर्यावरणविद् यह मानते हैं कि वन संसाधनों की बर्बादी में पशुचारण और ईंधन के लिए लकड़ी की कटाई मुख्य भूमिका निभाते हैं। यद्यपि इसमें कुछ सच्चाई हो सकती है किन्तु चारे और ईंधन हेतु लकड़ी की आवश्यकता की पूर्ति मुख्य रूप से पेड़ों की टहनियाँ काटकर की जाती है न कि पूरे पेड़ काटकर।