वर्तमान समय में बहुउद्देश्यीय नदी परियोजनाओं के विरोध के कारण-
(1) नदी जलीय जीव-आवासों में भोजन की कमी हो जाना-नदियों पर बाँध बनाने और उनका बहाव नियन्त्रित करने से उनका प्राकृतिक बहाव अवरुद्ध हो जाता है तथा जलाशय की तली में अत्यधिक तलछट जमा हो जाती है जिससे नदी का तल अधिक चट्टानी हो जाता है जिसके फलस्वरूप नदी जलीय जीव-आवासों में भोजन की कमी हो जाती है।
(2) वनस्पति और मिट्टियाँ जल में डूब जाना-बाढ़ के मैदान में बनाए जाने वाले जलाशयों द्वारा वहाँ उपलब्ध वनस्पति और मिट्टियाँ जल में डूब जाती हैं जो कि कालान्तर में अपघटित हो जाती हैं।
(3) स्थानीय समुदायों का वृहद स्तर पर विस्थापन होना-इन परियोजनाओं का विरोध मुख्य रूप से स्थानीय समुदायों के वृहद् स्तर पर विस्थापन के कारण है। आमतौर पर स्थानीय लोगों को उनकी जमीन, आजीविका और संसाधनों से हाथ धोना पड़ता है।
(4) मृदाओं का लवणीकरण होना-बहुउद्देश्यीय परियोजनाओं के फलस्वरूप अत्यधिक सिंचाई के कारण देश के अनेक क्षेत्रों में फसल प्रारूप परिवर्तित हो गया है। इससे मृदाओं के लवणीकरण जैसी गंभीर पारिस्थितिकीय समस्याएँ पैदा हो गई हैं।
(5) झगड़ों में वृद्धि होना-बहुउद्देश्यीय परियोजनाओं के फलस्वरूप अमीर भूमि मालिकों तथा गरीब भूमिहीनों के मध्य, ग्रामीण किसानों और शहरी नागरिकों के मध्य झगड़े बढ़ रहे हैं। इन परियोजनाओं के लागत और लाभ के बँटवारे को लेकर अन्तर्राज्यीय झगड़े आम होते जा रहे हैं।
(6) बाढ़ें आना-जो बाँध बाढ़ नियंत्रण के लिए बनाए जाते हैं उनके जलाशयों में तलछट जमा हो जाने से वे बाढ़ आने का कारण बन जाते हैं । अत्यधिक वर्षा होने की स्थिति में तो बड़े बाँध भी अनेक बार बाढ़ नियंत्रण में असफल रहते हैं।
(7) भूमि निम्नीकरण की समस्याएँ बढ़ना बाँधों के जलाशय में तलछट जमा होने से वह बाढ़ के मैदानों तक नहीं पहुँचती है जिससे भूमि निम्नीकरण की समस्याओं में वृद्धि होती है।
(8) भूकम्प तथा जल जनित बीमारियाँ-बहुउद्देश्यीय योजनाओं के कारण क्षेत्र विशेष में भूकम्प आने की संभावना बढ़ जाती है तथा अत्यधिक जल के उपयोग से जल जनित बीमारियाँ, फसलों में कीटाणुजनित बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं तथा जल प्रदूषण में वृद्धि होती है।