रेलमार्ग- बिहार में रेलमार्ग का विकास ब्रिटिश काल में सर्वप्रथम 1860 में हुआ था। इस अवधि में गंगा के किनारे ईस्ट इंडिया कम्पनी ने कोलकाता तक पहली रेल लाइन बिछाई।
यह रेलमार्ग मुख्यतः सुरक्षा और प्रशासनिक कार्य के लिए बनाया था और इस से पटना का सम्पर्क पश्चिमी और पूर्वी भारत से स्थापित हो गया। इसके बाद उत्तरी-बिहार में पूरब-पश्चिम रेलमार्ग का निर्माण हुआ।
उन्नीसवीं सदी के अन्तिम दशक तक कोलकाता से तत्कालीन बिहार के कई स्थानों को मिला दिया गया। बीसवीं सदी के मध्य तक अर्थात आजादी के समय तक उत्तरी बिहार में मीटरगेज के विकास के साथ कई शहरों को जोड़ दिया गया था। जबकि दक्षिण बिहार में अधिकतर बड़ी गेज का विकास हुआ था। स्वतंत्रता के बाद 1975 में राजेन्द्र सेतु निर्माण के उपरान्त उत्तरी और दक्षिणी बिहार का रेलमार्ग द्वारा सम्पर्क स्थापित हो गया।
2001 तक इस राज्य में रेल लाइन की कुल लम्बाई 6,283 किमी. हो गई है और हाजीपुर में 2002 में पूर्व-मध्य रेलवे का मुख्यालय स्थापित हो गया। 2003 में रेल लाइन को और विकसित किया गया और फतुहा-इस्लामपुर बड़ी लाइन बिछाई गई, इसके बाद राजगीर-नटेसर रेल-लाइन विस्तृत हुआ। बाँका को भागलपुर मन्दार हिल रेल लाइन से जोड़ दिया गया। दीघा-सोनपुर के बीच गंगा पर रेलपुल का निर्माण काम चल रहा है। किऊल-गया मार्ग में तिलैया स्टेशन के दक्षिण में कोडरमा तथा उत्तर में राजगीर से जोड़ने का काम चल रहा है। वर्तमान समय में बिहार के रेलमार्ग का नक्शा काफी बदल चुका है। सभी राज्यों की राजधानियों या मुख्य नगरों के लिए पटना से रेलगाड़ी रवाना होती है।
राज्य के भीतरी भागों में सवारी, एक्सप्रेस, शटल इ. एम. यू. तथा डी. एम. यू. गाड़ियाँ दौड़ती हैं। रेलवे के विकास एवं विस्तार के क्रम में कई बड़ी योजनाएं चल रही हैं।
किऊल-मुगलसराय रेल लाइन पटना-गया रेललाइन का विद्युतीकरण हो चुका है। पटना जंक्शन का विस्तार कर राजेन्द्रनगर तक कर दिया गया है। पटना-गया लाइन का दोहरीकरण हो रहा है।