बिरसा मुण्डा का प्रारम्भिक जीवन-1870 के दशक के मध्य में बिरसा का जन्म छोटा नागपुर के एक मुण्डा परिवार में हुआ था। उसके पिता गरीब थे। बिरसा का बचपन भेड़-बकरियाँ चराते, बाँसुरी बजाते और स्थानीय अखाड़ों में नाचते-गाते बीता था। उनकी परवरिश मुख्य रूप से बोहोंडा के आस-पास के जंगलों में हुई। लड़कपन में ही बिरसा ने अतीत में हुए मुंडा विद्रोहों की कहानियाँ सुन ली थीं। उन्होंने कई बार समुदाय के सरदारों (मुखियाओं) को विद्रोह का आह्वान करते देखा था। बिरसा के समुदाय के लोग ऐसे स्वर्ण युग की बात किया करते थे जब मुंडा लोग दीकुओं के उत्पीड़न से पूरी तरह आजाद थे।
बिरसा स्थानीय मिशनरी स्कूल में जाने लगे जहाँ उन्हें मिशनरियों के उपदेश सुनने का मौका मिला। वहाँ उन्होंने | सुना कि यदि मुंडा समुदाय के लोग अच्छे ईसाई बन जाएँ और अपनी 'खराब आदतें' छोड़ दें तो वे स्वर्ग का साम्राज्य | हासिल कर सकते हैं और अपने खोये हुए अधिकार वापस पा सकते हैं। बाद में बिरसा ने एक जाने-माने वैष्णव धर्म प्रचारक के साथ भी कुछ समय बिताया। उन्होंने जनेऊ धारण किया और शुद्धता व दया पर जोर देने लगे।
अपनी किशोरावस्था में बिरसा जिन विचारों के संपर्क में आए, उनसे वह काफी गहरे तौर पर प्रभावित थे।