(1) झूम खेती प्रायः जंगल में जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों पर की जाती थी।
(2) किसान पेड़ों को काट देते थे तथा वहाँ की पूरी वनस्पति को जला देते थे, ताकि कृषि भूमि तैयार हो सके।
(3) घास-फूस तथा वनस्पतियों को जलाने से बनी राख को वे खेतों में फैला देते थे। वे जमीन की जुताई नहीं करते थे। कुदालों से जमीन की ऊपरी सतह को खुरच देते थे।
(4) बीजों को रोपने के बजाय वे इस जमीन पर बीजों को छितरा देते थे।
(5) एक बार फसल के तैयार होने पर वे उसकी कटाई करते थे तथा इसी तरह की अन्य कृषि भूमि तैयार करने के लिए दूसरी जगहों पर चले जाते थे।
इसी कारण झूम कृषि को स्थानांतरित कृषि (खेती) भी कहा जाता है।