(1) विलियम एडम के अनुसार बंगाल और बिहार में एक लाख से ज्यादा पाठशालाएँ थीं। ये बहुत छोटे-छोटे केंद्र थे जिनमें आम तौर पर 20 से ज्यादा विद्यार्थी नहीं होते थे। फिर भी, इन पाठशालाओं में पढ़ने वाले बच्चों की कुल संख्या काफी बड़ी थीं।
(2) ये पाठशालाएँ सम्पन्न लोगों या स्थानीय समुदाय द्वारा चलाई जा रही थीं। कई पाठशालाएँ स्वयं गुरु द्वारा ही प्रारम्भ की गई थीं।
(3) देशी स्कूलों में शिक्षा का तरीका काफी लचीला था।
(4) बच्चों की फीस निश्चित नहीं थी। यह उनके माँ-बाप की आमदनी से तय होती थी अमीरों को ज्यादा और गरीबों को कम फीस देनी पड़ती थी।
(5) छपी हुई किताबें नहीं होती थीं, पाठशाला की इमारत अलग से नहीं बनाई जाती थी, बेंच और कुर्सियाँ नहीं होती थीं, ब्लैक बोर्ड नहीं होते थे, अलग से कक्षाएँ लेने, बच्चों की हाजिरी लेने का कोई इंतजाम नहीं होता था, सालाना इम्तिहान और नियमित समय-सारणी जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी।
(6) कुछ पाठशालाएँ बरगद की छाँव में ही चलती थीं तो कई गाँव की किसी दुकान या मंदिर के कोने में या गुरु के घर पर ही बच्चों को पढ़ाया जाता था।
(7) शिक्षा मौखिक होती थी और क्या पढ़ाना है, यह बात विद्यार्थियों की जरूरतों को देखते हुए गुरु ही तय करते थे।
(8) विद्यार्थियों को अलग कक्षाओं में नहीं बिठाया जाता था। सभी एक जगह, एक साथ बैठते थे। अलग-अलग स्तर के विद्यार्थियों के साथ गुरु अलग से बात कर लेते थे।