एक कुण्डली में फरों की संख्या $N$ है तो स्व-प्रेरण गुणांक किसके समानुपाती होगा?
[1993]
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(c) $L =\frac{ N \phi}{ i } ; \phi= BA ; B =\frac{\mu_0 Ni }{2 R }$
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L =\frac{\mu_0 N ^2}{2 R } A \Rightarrow L \propto N ^2
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एक कुण्डली जिसमें 50 फेरे हैं एक चुम्बकीय क्षेत्र $2 \times$ $10^{-2} T$ के लम्बवत् रखी जाती है। कुण्डली का क्षेत्रफल 100 सेमी $^2$ है। इसमे उत्पन्न प्रेरक वि.वा.ब. $0.1 V$ है। कुण्डली को 1 सेकण्ड में चुम्बकीय क्षेत्र से हटा दिया जाता है तो $t$ का मान है
तार का एक पाश (लूप) किसी चुम्बकीय क्षेत्र में घूर्णन करता है तो एक परिक्रमण (चक्र) में इसमें प्रेरित ई.एम. एफ. (e.m.f.) की दिशा में परिवर्तन की आवृत्ति होती है:
एक लम्बे बहुकुंडलक(सोलिनाइड) में 500 फेरें हैं। जब इसमें 2 ऐम्पीयर की धारा प्रवाहित की जाती है, तो हर फेरे से सम्बन्धित चुम्बकीय फ्लक्स $4 \times 10^{-3} Wb$ होती है। सोलिनाइड का स्वप्रेरकत्व होगा:
$r$ त्रिज्या की एक पतली अर्द्धवृत्ताकार चालक रिंग (वलय) $( PQR )$ किसी क्षैतिज चुम्बकीय क्षेत्र $B$ में गिर रही है। गिरते समय इसका समतल, आरेख में दर्शाये गये अनुसार, ऊध्र्वाधर रहता है। जब गिरती हुई रिंग की चाल $v$ है तो, इसके दो सिरों के बीच विकसित विभवान्तर होगा