एशिया और अफ्रीका के अधिकांश देश यूरोपीय उपनिवेश थे। इन उपनिवेशों के नागरिकों को कोई राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं था । अतः इन देशों की जनता ने अपने-अपने देशों में लोकतंत्र की स्थापना के लिए संघर्ष करना शुरू किया । यूरोपीय देश इन औपनिवेशिक देशों का आर्थिक शोषण कर रहे थे। जनता का संघर्ष आरम्भ हआ तो औपनिवेशिक शासकों ने इसे दबाने का प्रयास किया। संघर्ष के विस्तार देखते हुए औपनिवेशिक शासकों को जनता के समक्ष झुकना पड़ा तथा सीमित अधिकार वाली सरकार चुनने का अधिकार प्राप्त हुए। परन्तु जनता इससे संतुष्ट नहीं थी। अत: संपूर्ण राजनैतिक अधिकारों की माँग होने लगी। अंत में औपनिवेशिक शासकों को इन देशों को स्वतंत्र करना पड़ा। इसी तरह हमारा देश भारत 1947 ई. में स्वतंत्र हुआ और यहाँ लोकतंत्र की स्थापना हुई।
पश्चिमी अफ्रीका में घाना एक देश है; जहाँ लोकतांत्रिक शासन का प्रयोग बहुत अधिक सफल नहीं रहा । घाना पहले ब्रिटेन का उपनिवेश था और इसका नाम गोल्डकोस्ट था । राजनैतिक अधिकारों हेतु यहाँ संघर्ष का आरम्भ हुआ। एक सुनार का पुत्र एवं शिक्षक ‘लामे एनक्रमा’ इस संघर्ष का नेता था । इनके नेतृत्व में घाना 1957 ई. में स्वतंत्र हुआ। आजादी के बाद एनक्रमा घाना के प्रधानमंत्री एवं फिर राष्ट्रपति चुने गए । इस तरह पश्चिमी अफ्रीका में लोकतंत्र की स्थापना का प्रथम सफल प्रयास हुआ । घिर-घिरे यहाँ उपनिवेशवाद का अंत हुआ । सेना ने 1966 ई. में लोकतंत्र का खात्मा कर पुनः सैनिक शासन कायम कर दिया ।