सल्तनत काल में दो प्रकार की गायन शैली का विकास हुआ-पहला था गजल और दूसरा कव्वाली । गजल को अरबी भाषा में स्त्रीलिंग माना जाता है, जबकि हिन्दी में इसे पुल्लिग मानते हैं । गजल का शाब्दिक अर्थ है अपने प्रेम पात्र से वार्ता । एक गजल में कम-से-कम पाँच और अधिक-से-अधि क ग्यारह शेर होते थे। इसके संग्रह को दीवान कहा जाता है । गजलें कि शृंगार रस में लिखी होती थी, जिस कारण इसका गायन संगीत प्रेमियों को अच्छा लगता था । सूफियों को भी गजल प्रिय रहा ।
कव्वाली का चलन विशेषतः सूफी गायकों में था । ‘कौल’ का अर्थ है कथन । इसको गाने वाला कव्वाल कहलाता था । यही शैली कौव्वाली कहलायी । कोदाली गाते हुए गायक भक्तिमय हो जाता था । उसके समक्ष लगता था कि अल्ला सामने आ गया हो । गाते-गाते वे झूमने और नाचने लगते