जाति अनेक रूपों में राजनीतिग्रस्त होती है-
हर जाति स्वयं को बड़ा बनाना चाहती है। इसलिए अब वह अपने समूह की सभी जातियों को अपने साथ लाने की कोशिश करती है।
चूंकि एक जाति अपने दम पर सत्ता पर कब्जा नहीं कर सकती इसलिए वह ज्यादा राजनैतिक ताकत पाने के लिए दूसरी जातियों या समुदायों को साथ लेने की कोशिश करती है और इस तरह उनके बीच संवाद और मोल-तोल होता है।
राजनीति में नए किस्म की जातिगत गोलबंदी भी हुई है, जैसे-'अगड़ा' और 'पिछड़ा'। . इस प्रकार जाति राजनीति में कई तरह की भूमिकाएं निभाती है।