सामाजिक समानता में शहरीकरण का योगदान-सामाजिक समानता की स्थापना में शहरीकरण के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। यथा-
(1) शहरीकरण में जाति-व्यवस्था के पुराने स्वरूप और वर्ण व्यवस्था पर टिकी मानसिकता में बदलाव आ रहा है। शहरी इलाकों में तो अब ज्यादातर इस बात का कोई हिसाब नहीं रखा जाता कि ट्रेन या बस में आप के साथ कौन बैठा है या रेस्तराँ में आपकी मेज पर बैठकर खाना खा रहे आदमी की जाति क्या है?
संविधान में जो जातिगत भेदभाव का निषेध तथा अस्पृश्यता का निषेध किया गया है, शहरों में व्यावहारिक रूप में उसे लागू किया जा रहा है। यहाँ खान-पान, रहन-सहन, वेशभूषा, व्यवसाय सम्बन्धी जातिगत भेदभाव की वर्जनाएँ समाप्त हो रही हैं।
(2) शहरीकरण ने जातिगत निवास सम्बन्धी भेदभाव को भी काफी हद तक समाप्त कर दिया है।
(3) शहरों में सबको शिक्षा प्राप्त करने की समानता है। स्कूलों व कॉलेजों में बिना किसी भेदभाव के सभी जाति व धर्म के लोग एक साथ बैठकर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। यद्यपि उच्च शिक्षा में अभी भी पिछड़े वर्ग के लोग पिछड़े हुए हैं, लेकिन इसका प्रमुख कारण आर्थिक असमानता है, सामाजिक असमानता नहीं।।