जर्मप्लाज्म (जनन द्रव्य) की निरन्तरता का सिद्धान्त दिया गया-
[1989]
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(b) 1904 में आगैस्ट वीजमैन ने लैमार्क के मत का परीक्षण किया। इसके लिए उन्होंने 22 पीढ़ियों तक चूहे की पूँछ काटी फिर भी उन्हें पूंछ रहित चूहा नहीं प्राप्त हुआ। परीक्षण के आधार पर उन्होंने "जननद्रव्य की निरन्तरता" का मत प्रतिपादित किया। उनके अनुसार वे गुण जो जनन कोशाओं (प्रजननक) को प्रभावित करते हैं, वंशागत होते हैं। दैहिक कोशाओं में होने वाले परिवर्तन अगली पीढ़ी में स्थानान्तरित नहीं होते। ह्यूगो डी व्रीज ने
"उत्परिवर्तन वाद" प्रस्तुत किया।
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