कार्बोक्सिलिक अम्लों के अम्ल सामर्थ्य पर विभिन्न प्रतिस्थापियों के प्रभाव की विवेचना कीजिए।
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कार्बोक्सिलिक अम्लों के अम्ल सामर्थ्य पर प्रतिस्थापियों का प्रभाव - कार्बोक्सिलिक अम्लों के आयनन से प्राप्त कार्बोक्सिलेट आयन जितना अधिक स्थायी होता है साम्य उतना ही अग्र दिशा में विस्थापित होता है जिससे हाइड्रोजन आयन $( H ^{+})$ अधिक बनते हैं अतः अम्लीय प्रबलता में वृद्धि होती है।
कार्बोक्सिलिक अम्ल में उपस्थित प्रतिस्थापी कार्बोक्सिलेट आयन $($ संयुग्मी क्षारक $)$ के स्थायित्व को प्रभावित करते हैं अतः इनसे इनके अम्लीय सामर्थ्य पर भी प्रभाव पड़ता है।
इलेक्ट्रॉन आकर्षित करने वाले समूह $(-I$ प्रभाव या $EWG)$ कार्बोक्सिलेट आयन के स्थायित्व को बढ़ाते हैं क्योंकि ये साझित इलेक्ट्रॉनों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं जिससे ऋणावेशित ऑक्सीजन परमाणु का इलेक्ट्रॉन घनत्व कम हो जाता है अर्थात् ऋणावेश का विस्थानीकरण हो जाता है। अतः अम्ल की अम्लीय प्रबलता बढ़ जाती है।
विभिन्न समूहों के -I प्रभाव का बढ़ता क्रम निम्न प्रकार होता है-
$\ce{ C _6 H _5-< OCH _3< OH < I < Br < Cl < F < CN < NO _2< CF _3 } (-I$ प्रभाव $)$
इसके विपरीत इलेक्ट्रॉन दाता समूह $(+I$ प्रभाव या $EDG)$ के कारण कार्बोक्सिलेट आयन का स्थायित्व कम हो जाता है क्योंकि यह ऑक्सीजन परमाणु पर इलेक्ट्रॉन घनत्व को बढ़ा देता है, जिससे इसकी क्रियाशीलता बढ़ जाती है अतः अम्ल की अम्लीय प्रबलता कम हो जाती है।
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