(i) फीनॉल

में उपस्थित - OH समूह का ऑक्सीजन बेन्जीन वलय के साथ अनुनाद करता है (+M प्रभाव) अतः C-O आबन्ध में द्विबन्ध के लक्षण आ जाते हैं। इस कारण यह बन्ध लम्बाई मेथेनॉल की C-O बन्ध लम्बाई से कम होती है क्योंकि मेथेनॉल में यह अनुनाद नहीं होता है।
(ii) ईथर में उपस्थित C-O-C आबन्ध कोण का चतुष्फलकीय कोण से अधिक होने का कारण एथिल समूहों की उपस्थिति है जिनका आकार बड़ा होने के कारण उनके मध्य प्रतिकर्षण होता है। इसके साथ ही इसमें ऑक्सीजन पर उपस्थित एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्मों के मध्य प्रतिकर्षण भी होता है।
(iii) समावयवी ऐल्कोहॉलों में शाखन बढ़ने पर क्वथनांक में कमी होने का कारण पृष्ठ क्षेत्रफल का कम होना है जिससे अणुओं के मध्य वाण्डरवाल बलों में कमी हो जाती है।