भारतीय उद्योगपति, भारतीय मजदूरों से 15-16 घंटे से लेकर 18 घंटे तक काम कराते थे। उन्हें कोई सुविधा भी नहीं देते थे और बेहद कम मजदूरी देते थे। अतः मजदूरों ने हंगामा व हड़ताल कर दिया । भारतीय उद्योगपतियों ने उनकी मांगों को नहीं माना । उनकी मांगों को मानने का मतलब होता मालिकों का खर्च बढ़ जाता और कारखानों में बनी वस्तुओं का दाम बढ़ जाता । ऐसी स्थिति में इंगलैंड की बनी वस्तुएँ सस्ती और भारत में बनी वस्तुएँ महंगी हो जाती और भारतीय उद्योग का विकास धीमा पड़ जाता। अपने स्वार्थ के लिए इंगलैंड के उद्योगपतियों ने भातीय मजदूरों का साथ दिया । अंग्रेजी सरकार ने सन् 1881 में मजदूरों के हित में पहली बार नियम बनाए जिससे राजदूरों की स्थिति में सुधार हुआ।