नाना भाई खांट डूंगरपुर में पाठशाला के संचालक थे, सेंगा भाई उसी पाठशाला में अध्यापक थे, जबकि कालीबाई डूंगरपुर गाँव की 13 वर्षीय भील बालिका थी। पाठशाला द्वारा जनजागृति का कार्य किया जा रहा था, जो कि वहाँ के महारावल को पसंद नहीं था। अतः उन्होंने पाठशाला को बंद करने के लिए मजिस्ट्रेट व पुलिस को भेजा। पुलिस ने नानाभाई को पाठशाला बंद करने को कहा, उनके मना करने । पर उन्हें गोली मार दी गई, जबकि सेंगा भाई को पीटकर रस्सी से गाड़ी के पीछे बांध दिया गया। किसी भी व्यक्ति ने प्रतिरोध नहीं किया परन्तु बालिका कालीबाई जो खेत से घास काटकर आ रही थी, उसने हिम्मत दिखाई और सेंगा भाई की रस्सी को दाँतली से काट दिया। यह देखकर पुलिस ने नन्हीं बालिका पर अंधाधुंध गोलियाँ बरसाई। कालीबाई अपने गुरु की रक्षा करते हुए शहीद हो गई । इस प्रकार, नाना भाई की हिम्मत, सेंगा भाई की सहनशीलता व कालीबाई के त्याग ने शिक्षा के प्रति समर्पण, लगन और गुरुभक्ति की मिसाल प्रस्तुत की।