नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली से उनका अभिप्राय ऐसी व्यवस्था से था जिसमें उन्हें अपने संसाधनों पर वास्तविक अर्थों में नियन्त्रण मिल सके, जिसमें उन्हें विकास के लिए अधिक सहायता मिल सके। कच्चे माल के सही दाम मिलें और अपने तैयार सामानों को विकसित देशों के बाजारों में बेचने के लिए उचित पहुँच मिले।