प्रकाश विद्युत उत्सर्जन होने के लिए यह आवश्यक है कि आपतित प्रकाश की एक निश्चित न्यूनतम मान से अधिक
[2011]
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(d) प्रकाश वैद्युत प्रभाव के लिए आपतित प्रकाश की आवृत्ति एक निश्चित न्यूनतम जिसे देहली आवृत्ति $\left(v_0\right)$ कहते हैं, से अधिक होना चाहिए। हम जानते हैं, $\frac{1}{2} mv ^2= h v- h v_0$ प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के लिए $v>v_0$ जहाँ $v$ आपतित प्रकाश की आवृत्ति है
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धातु के किसी पृष्ठ पर आपतित विकिरणों की ऊर्जा को $20 \%$ बढ़ाने पर, उससे उत्सर्जित फोटो इलेक्ट्रॉनों $($प्रकाश विद्युत इलेक्ट्रॉनों$)$ की गतिज उर्जा $0.5\ eV$ से बढ़कर $0.8\ eV$ हो जाती है। इस धातु का कार्य फलन है
द्रव्यमान $m$ के इलेक्ट्रॉन तथा किसी फोटॉन की ऊर्जाएं $E$ एकसमान हैं। इनसे संबद्न दे$-$ब्बाग्ती तरंगदैर्घ्यों का अनुपात है :
$($यहाँ $c$ प्रकाश का वेग है।$)$
किसी धातु का कार्य फलन $1.8 eV$ है। इससे प्रकाश विद्युत उत्सर्जन में उत्पन्न इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम ऊर्जा $0.5 eV$ है। इसका संगत निरोधी (अंतक) विभव होगा:
क्रमशः $1 eV$ तथा $2.5 eV$ ऊर्जा के फोटॉन विकिरण एक के बाद एक किसी प्रकाश सुग्राही (संवेदी) पृष्ठ को प्रदीप्त करते हैं। इस पृष्ठ का कार्य फलन $0.5 eV$ है। इन दोनों में उत्सार्जित इलेक्ट्रॉनो की अधिकतम चालों का अनुपात होगा :