पूर्व में राजस्थान के राजाओं-जागीरदारों के साथ किसानों के संबंध बेहतर थे। परंतु अंग्रेजों के आगमन पर देशी रियासतों के राजाओं ने उनसे सहायक संधियाँ की और अंग्रेजों ने उनसे नगद लगान की मांग की। राजाओं ने यह राशि जागीरदारों से तथा जागीरदारों ने आगे किसानों से वसूलना प्रारम्भ किया। किसानों से बेगार भी लिया जाने लगा। परेशान एवं पीड़ित किसानों ने अंततः आंदोलन का रास्ता अपनाया। राजस्थान में कई किसान आंदोलन हुए, जिनमें से कुछ प्रमुख निम्न हैं
1. बिजोलिया किसान आंदोलन: यह संगठित किसान आंदोलन वर्तमान भीलवाड़ा जिले के बिजोलिया में धाकड़ जाति के किसानों द्वारा प्रारंभ किया गया। यह आंदोलन मुख्यत: तीन चरणों में चलाया गया-प्रथम चरण (1897 से 1914 तक), दूसरा चरण (1914 से 1923 तक) और तीसरा चरण (1923 से 1941 तक)।
इस आंदोलन में नानजी, ठाकरी पटेल, साधु सीताराम दास, फतहकरण चारण, ब्रह्मदेव, विजयसिंह पथिक, मणिक्यलाल वर्मा, सेठ जमनालाल बजाज आदि समाजसेवी नेताओं की सशक्त भूमिका रही। अंजना देवी चौधरी, रमा देवी, नारायणी देवी वर्मा जैसी महिला नेत्रियों ने भी अपना विशेष योगदान दिया।
2. बेगूं किसान आंदोलन: बिजोलिया आंदोलन से प्रेरित होकर मारवाड़ के बेगूठिकाने में भी किसानों ने जागीरदार के विरुद्ध आवाज उठाई । पथिक जी के आदेश से रामनारायण चौधरी ने किसानों का नेतृत्व किया। रुपाजी व कृपाजी धाकड़ जैसे नेताओं ने अपना बलिदान देकर आंदोलन को सफल बनाया। प्रशासन को झुकना पड़ा और लगभग 34 लागतें समाप्त की गई व बेगार भी बंद कर दिया गया। -
3. बूंदी किसान आंदोलन: इस आंदोलन की शुरुआत सन् __1926 में पं. नयनूराम, रामनारायण चौधरी एवं हरिभाई किंकर के नेतृत्व में हुई। किसानों ने लाग-बाग व बेगार का विरोध किया, हीनानक भील को पुलिस की गोली का शिकार होना पड़ा। अंतत: बूंदी राज्य प्रशासन ने 1943 में किसानों की माँगें स्वीकार कर ली।
4. अलवर किसान आंदोलन: यह आंदोलन दो कारणों से दो चरणों में चला। प्रथम, अलवर राज्य में जंगली सूअरों का आतंक था, वे किसानों की फसलों को नुकसान पहुंचाते। परन्तु उन्हें मारने की मनाही थी, अत: 1921 में किसानों ने आंदोलन किया। द्वितीय, सन् 1925 में अलवर महाराजा जय सिंह द्वारा की गई लगान वृद्धि के विरुद्ध किसानों ने नीमूचाणा गाँव में सभा का आयोजन किया। इस सभा पर जलियांवाला बाग की तरह अंधाधुंध गोलियाँ चलाई गई।
5. सीकर किसान आंदोलन-जयपुर राज्य के बड़े ठिकानों में से एक सीकर में किसानों ने लगान वृद्धि का विरोध किया। सरदार हरलाल सिंह, नेताराम सिंह तथा पृथ्वी सिंह गोठड़ा इस आंदोलन के प्रमुख नेता थे। किसानों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर गोलियाँ चलीं, जिसकी गूंज लंदन के हाउस ऑफ कॉमंस में हुई। अंतत: बंदोबस्त सुधार हेतु किसानों को आश्वस्त करना पड़ा तथा लगान में भी कमी करनी पड़ी।
6. शेखावाटी किसान आंदोलन-शेखावाटी के किसानों ने भी लगान वृद्धि का विरोध किया। चिड़ावा में मास्टर कालीचरण ने सेवा समिति का गठन किया । नवलगढ़, मंडावा, डूंडलोद, बिसाऊ, मालासर के किसानों ने भी लगान देने से मना कर। दिया। ठिकानेदारों व ठाकुरों ने किसानों पर अत्याचार किये। यहाँ का स्थायी समाधान आजादी के बाद हो पाया।
7. अन्य किसान आंदोलन-सन् 1945 में चंडावत में किसान आंदोलन हुआ, जिसे कुचलने के लिए लाठियों व भालों का प्रहार किया गया। सन् 1947 में डाबड़ा में लगान, लागबाग, बेगार के विरुद्ध लगभग 600 किसान ठिकानेदार से मिलने गए, तो उन पर बंदूकें, तलवारें व भाले चलवाए गए।