सिसोदिया वंश के कला प्रेमी शासक कुम्भा का जन्म 1417 ई. में चित्तौड़ में हुआ तथा 1433 ई. में मेवाड़ के राज सिंहासन पर बैठे। महाराणा कुम्भा के व्यक्तित्व में कटार, कलम और कला की त्रिवेणी थी। सांस्कृतिक दृष्टि से कुम्भा का शासन काल मेवाड़ के इतिहास का स्वर्ण युग था। कुम्भा ने महाराजाधिराज, रायरायन, महाराणा, राजगुरु, दानगुरु, हालगुरु, परमगुरु, चापगुरु आद योग्यता अभिव्यक्त करने वाली उपाधियाँ प्राप्त की हुई थी।
मेवाड़ में स्थित 84 दुर्गों में से 32 दुर्ग, कुम्भा द्वारा निर्मित हैं। कुम्भा ने अचलगढ़ दुर्ग, वसंतगढ़ दुर्ग, भोमट दुर्ग, मंचिंद दुर्ग, कुम्भलगढ़ तथा कुम्भ-श्याम मंदिर, चित्तौड़ के दुर्ग में स्थित विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया। कुम्भा महान संगीतकार भी थे, उनके द्वारा रचित संगीत के ग्रंथों में संगीतराज, संगीत मीमांसा, सूड़ प्रबंध सबसे प्रमुख हैं। कुम्भा ने गीतगोविंद की रसिकप्रिया टीका व चंडीशतक की टीका भी लिखी।