7वीं से 12वीं शताब्दी के बीच भारत में सामंतवाद का उदय हुआ। उस समय की पुस्तकों तथा अन्य अभिलेखों में सामंत को अनेक नाम दिले गये हैं । जैसे : सामंत, राय, ठाकुर, राणा, रावत इत्यादि । उस समय के राजा जब किसी अन्य राजा को युद्ध में हराता था तो उसके राज्य को अपने राज्य में मिला लेता था । लेकिन लगभग 1000 ई० के आसपास युद्ध में हारे हुए राजा को उस स्थिति में उसके राज्य वापस मिल जाते थे जब बह विजयी राजा की अधीनता मान लेता था।
बदले में उसे कुछ शर्ते भी माननी पड़ती थीं । पराजित राजा को यह स्वीकार करना पड़ता था कि विजयी राजा उसका स्वामी है और वह विजयी राजा के चरणों में रहने वाला दास है । पराजित राजा विजयी राजा का ‘सामंत’ कहलाता था। इसी प्रकार सामंतवाद का उदय हुआ।