भ्रूणीय अण्डाशय में कई मिलियन अण्डजननी कोशिकाएँ बन जाती हैं। अण्डजननी कोशिका आकार में बड़ी होकर प्राथमिक अंडक (Primary Oocyte) में विभेदित हो जाती है। प्राथमिक अण्डक कोशिका कणिकामय कोशिकाओं (granulosa cells) से घिर जाती है जिससे प्राथमिक पुटक का निर्माण होता है। जन्म से यौवनारंभ तक अनेक पुटकों का ह्रास हो जाता है। यौवनारंभ के समय लगभग 60,000 से 80,000 प्राथमिक पुटक शेष रहते हैं। प्राथमिक पुटक के चारों ओर मेम्ब्रेना ग्रेन्यूलोसा स्तर में और वृद्धि हो जाती है तथा द्वितीयक पुटक का निर्माण होता है। द्वितीयक पुटक के चारों ओर प्रावरक स्तर (Theca Layer) अन्तः प्रावरक व बाह्य प्रावरक में विभेदित हो जाती है। इस प्रकार बनी रचना को तृतीयक पुटक कहते हैं। इसमें स्थित प्राथमिक अण्डक में अर्धसूत्री विभाजन-I होता है जिससे द्वितीयक अण्डक व एक छोटा ध्रुवीय काय बनता है। द्वितीयक अण्डक के चारों ओर पारदर्शी आवरण (Zona Pellucida) व पुटक कोशिकाओं का बना कोरोना रेडियटा स्तर बन जाता है। द्वितीयक अण्डक में अर्धसूत्री विभाजन -II प्रारम्भ होकर मेटाफेज अवस्था में निलम्बित हो जाता है। तृतीयक पुटक से बनी परिपक्व पुटक अण्डोत्सर्ग के समय फटती है तो द्वितीयक अण्डक मुक्त होता है। निषेचन के समय अर्धसूत्री विभाजन-II पूरा होता है तथा इससे एक ध्रुवीय काय व अण्डाणु (Ovum) बनता है।