1857 के विद्रोह के पश्चात् ब्रिटिश सरकार को लगता था कि स्थानीय रीति-रिवाजों, व्यवहारों, मूल्य- मान्यताओं और धार्मिक विचारों से किसी भी तरह की छेड़छाड़ 'देशी' लोगों को भड़का सकती थी। अतः वह प्रचारक शिक्षा को प्रत्यक्ष सहायता देने में आनाकानी करने लगी।