(1) 1857 के विद्रोह का शुभारम्भ मेरठ से हुआ। यहाँ से यह दिल्ली तक पहुँचा। दिल्ली में अनेक अंग्रेज अफसर मारे गये। दिल्ली पर विद्रोहियों का कब्जा हो गया।
(2) खबर फैलने के साथ ही विद्रोहों का सिलसिला शुरू हो गया। एक के बाद एक हर रेजिमेंट में सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया और वे दिल्ली, कानपुर व लखनऊ जैसे मुख्य बिन्दुओं पर दूसरी टुकड़ियों का साथ देने को निकल पड़े।
(3) उनकी देखा-देखी कस्बों और गाँवों के लोग भी बगावत के रास्ते पर चलने लगे। वे स्थानीय नेताओं, जमींदारों और मुखियाओं के पीछे संगठित हो गये।
(4) स्वर्गीय पेशवा बाजीराव के दत्तक पुत्र नाना साहेब कानपुर के पास रहते थे। उन्होंने सेना इकट्ठा की और ब्रिटिश सैनिकों को शहर से खदेड़ दिया। उन्होंने खुद को पेशवा घोषित कर दिया। उन्होंने ऐलान किया कि वह - बादशाह बहादुरशाह जफर के तहत गवर्नर हैं।
(5) लखनऊ में बेगम हजरत महल ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोहों को बढ़ावा देने में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। झाँसी में रानी लक्ष्मीबाई भी विद्रोही सिपाहियों के साथ जा मिलीं। उन्होंने नाना साहेब के सेनापति ताँत्या टोपे के साथ मिलकर - अंग्रेजों को भारी चुनौती दी।
(6) मध्यप्रदेश के मांडला क्षेत्र में, राजगढ़ की रानी अवन्ति बाई लोधी ने 4000 सैनिकों की फौज तैयार की और अंग्रेजों के खिलाफ उसका नेतृत्व किया।
(7) विद्रोही टुकड़ियों के सामने अंग्रेजों की संख्या बहुत कम थी। बहुत सारे मोर्चे पर उनकी जबरदस्त हार हुई। इससे लोगों को यकीन हो गया कि अब अंग्रेजों का शासन खत्म हो चुका है। अब लोगों को विद्रोहों में कूद पड़ने का गहरा आत्मविश्वास मिल गया था। खास तौर से अवध के इलाके में चौतरफा बगावत की स्थिति थी।
(8) फैजाबाद के मौलवी अहमदुल्ला शाह ने भविष्यवाणी की कि अंग्रेजों का शासन जल्दी ही खत्म हो जाएगा। वे अपने समर्थकों की एक विशाल संख्या के साथ अंग्रेजों से लड़ने लखनऊ जा पहुँचे।
(9) बरेली के सिपाही बख्त खान ने लड़ाकों की एक विशाल टुकड़ी के साथ दिल्ली की ओर कूच कर दिया। वह इस बगावत में एक मुख्य व्यक्ति साबित हुए।
(10) बिहार के एक पुराने जमींदार कुँवर सिंह ने भी विद्रोही सिपाहियों का साथ दिया और महीनों तक अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी।